भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौजें खींचातानी पर / ज़फ़र गोरखपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौजें खींचातानी पर
नाव अकेली पानी पर

दिल में गुज़री ख़ून की मौज
चाँद हँसा पेशानी पर

हर मुश्किल से आँख लड़ा
मिट्टी डाल आसानी पर

रात हमारे घर जैसी
तनहाई दरबानी पर

डाली डाली क़ैची है
सैंत ले चिड़िया रानी, पर

डूबने वाला प्यासा था
आग उगी है पानी पर