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मौत और ज़िंदगी / सुनीता शानू

जिन्दगी आती है
 रोती, बिलखती, हँसती, खिलखिलाती
 शोर मचाती
 किन्तु मौत
 दबे पाँव, खामोशी से
 बिन कहे बिन बुलाये
 आकर गुजर जाती है