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मौत का दुःख / नरेश अग्रवाल

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मत जाओ उस बूढ़े आदमी के पास
कल ही उसका जवान बेटा मरा है
उसे किसी की सांत्वना की जरूरत नहीं
उसे चाहिए ढेर सारी ताकत
पहाड़ जैसी हिम्मत
दोबारा खड़े होने के लिए

उसके पास ढेर सारे पैसे हैं
ढेर सारी संपत्ति है
बहुत बड़ा व्यवसाय भी है
लेकिन हाथ नहीं हैं उसे संभालने वाले
वह रह-रहकर हॅंसता है बेटे की बेवकूफी पर
जो व्यर्थ में आ गया मौत के चंगुल में
वह भी बच सकता था इससे
जैसे उसका पिता बचता रहा आज तक

वह सख्त नाराज है मौत की साजिश से
वह नफरत से झल्ला रहा है
वह आक्रोश से जल रहा है
वह भूल चुका है ईश्वर को
अब वह प्रार्थना नहीं करेगा
न ही दीप जलायेगा
अब वह जियेगा
अपने आत्मविश्वास के सहारे
अकेला सिर्फ अकेला
आज भी और आगे भी ।