मौत का नाच / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'
नाच रही नर्तकी-सरीखी
मैं रण-चंडी छम-छम-छम!
धँसती-सी जा रही धरित्री
पदाघात पाकर निर्मम!
चमक रही इंगित पर चपला
होता भीषण बज्र-निनाद!
मरघट की लघु-भस्म-धूल में
लोट रहा यौवन-उन्माद!
करती हूँ विप्लवी-वीर का
मैं प्रचंड स्वर से आह्वान
”आ, मेरी अगाध-गोदी में
बलिवेदी पर दे बलिदान।“
नाच रही नर्तकी सरीखी
मैं रण-चंडी छम-छम-छम!
शंखनाद कर उधर कह रहा
विद्रोही-दल बम-बम-बम!
उड़ता है उन्मुक्त-गगन में
स्वतंत्रता का केतु विशाल!
लहराती धक-धक धक-धक कर
भीषण-शून्य-चिता की ज्वाल!
मैं उमड़ाती हूँ समुद्र की
तरल-तरंगों को फुफकार!
लील-लील जाती मुँह बा कर
जग के शत कातर-चीत्कार!
नाच रही नर्तकी-सरीखी
मैं रण-चंडी छम-छम-छम!
कायरता का गला घुट रहा
छोड़ रही दानवता दम!
प्रातः के उन्नत-ललाट पर
संध्या चिता जलाती है!
ज्वालाओं में पड़ी वेदना
तड़प-तड़प चिल्लाती है!
दौड़-दौड़ मैं बहा रही हूँ
सभी ओर ध्वंसक-तूफ़ान!
चीख रहे हैंपंजरमें पड़
पाखंडी पापी के प्रान!
नाच रही नर्तकी-सरीखी
मैं रण-चंडी छम-छम-छम!
गरज-गरज बरसाते बादल
आज रक्त-वर्षा झम-झम!
हँसती है पगली-प्रतिहिंसा
दाँत पीस पैशाचिक-हास!
रण-वाद्यों के घोर-नाद से
फटा जा रहा है आकाश!
करती हूँ विप्लवी-वीर का
मैं प्रचंड स्वर से आह्वान
”आ, मेरी अगाध-गोदी में
बलि-वेदी पर दे बलिदान।“
10.1.29