भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौत की घड़ी / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
पिता और पुत्र के मध्य से
वह किसी साँप-सी
गुज़र जाएगी
दोनों उस गुज़र जाने की
लकीर को
सिहरते देखेंगे
एक-दूसरे की आँखों में
फिर एक-दूसरे के कन्धे पर
सिर रख सो जाएँगे