भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौत को समझता था प्यास / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौत को समझता था प्यास का पियाला था
क्या बतायें उसको जो ग़म के घर से आया था

एक नगर यादों का रूह में बसा रक्खा
सिर्फ़ उन्हीँ यादों में प्यार का उजाला था

नफरतों की दुनियाँ में एक फूल उल्फ़त का
हमने बड़ी शिद्दत से फूल वह खिलाया था

बस निगाह मिलते ही दिल में उतर जाता जो
खूब आदमी था वह आदमी निराला था

वो हमारी यादों में इस कदर समा बैठा
हमने मुश्किलों से दिल से जिसे निकाला था

अश्क़ की जो दौलत थी आँख से नहीं निकली
रुख़ पर थी हँसी रहती दिल पर ग़म का छाला था

संगदिल ज़माने में कौन है हुआ अपना
डर नहीं था दुनियाँ का रब का सर पर साया था