मौत मर्मस्पर्शी रचना है / भावना जितेन्द्र ठाकर
ज़िंदगी को कविता-सी गुनगुनाते जीने वालों को,
मर्मस्पर्शी रचना समान मौत से मिलकर डर तो लगता होगा।
किसी अपने को छोड़कर आख़री सफ़र पर निकलना कितना अखरता होगा,
एक जीव को देह से बिछड़ना कितना खलता होगा।
मर्मस्पर्शी रचना की गहराई में डूबते धड़कती साँसों के तार टूटते होंगे,
एक-एक कर टूटती श्रृंखलाओं से धागा तोड़ना जीव को कहाँ भाता होगा।
अपनों के आक्रंद की गूँज से गिरह छुड़ाना आसान नहीं,
राम नाम सत्य की गूँज में आत्मा का ज्ञान पिघलता होगा।
जुदाई की जद्दोजहद के बीच,
जाते हुए अपने को रोक नहीं पाने का दर्द पिछे रहे परिवार को कचोटता होगा।
जलकर भस्म हुए स्वजन की राख भरे कलश को गंगा में बहाना
परिवार को नखशिख तार-तार करता होगा।
ज़हर से भी ज़हरिली सच्चाई है मौत,
रानाईयाँ भरी दुनिया को अलविदा कह कर कौन जाना चाहता होगा।
जाने वाले चले जाते है एक अपूर्ण क्षति छोड़ कर,
स्वजन की प्रीत को भुलाना अग्निदाह देने वालों के लिए कितना मुश्किल होता होगा।