मौत हम्मर सजनी / रामपुकार सिंह राठौर
हमही साजन मौत हमर सजनी।
हरदम खेयाल रखे हम्मर मन रजनी।
हमरे कमजोरी हे ओकरा से डर जाही
नाम ओकर सुनते जीते जी लहर जाही
हमरा से है ऊ हजार गुना बजनी।
हमही साजन मौत हमर सजनी
सपनों में कहियो न ओकरा इयाब करी
लेकिन ऊ छन छन में गिन रहल हे अँगुरी
पता नऽ कि कखनी पहुँचतै दहजनी।
चार बार चिट्ठी से खबरिया भेजावै
कसमस है आवेला डोलया सजावै
सबसे हैं ऊहे जबरजंग जादूगरनी।
पहिल पत्र समझऽ जब बाल होवे उज्जर
दूसर चिट्ठी पाते नजर होवे धु धुर
तीसर चिट्ठी हाय रे पहुँचल दँत तोड़नी
एतनो पर कहियो न हमरा इयाद रहे
अप्पन छोड़ रोज नया औरत के चाह रहे
चौथा चिट्ठी कमर टेढ़ हाथ पड़ल ठेंघुनी।
कभी जब परेम जने बिन चिट्ठियो चल आवे
कमजोर जब समझे डेरावे धमकावे
साथ लेके सुतत तोसक है या सुजनी।
कहऽ हे कि डर मत तू देबो नया कपड़ा
केतना तोरा प्यार करी कैसन हे तू हिजड़ा
हमरे अँकवार भरऽ हमही मन रजनी।
हमरो इयाद पड़ल तूही हम्मर हे अप्पन
एगो जब खोजऽ हली मिल जा हलै छप्पन
अप्पन अपने होवे बकिये नक छिकनी।
हम ही साजन मौत हमर सजनी।