मौन अब सुलग जाये / राजीव रंजन प्रसाद
चावल के दो दानों के कर्जदार कृष्ण
उस द्यूत गृह में
अधिकार-अधिकार, कर्तव्य-कर्तव्य चीखती
द्रौपदी की पुकार सुन कर
दौडे चले आये थे
आह! कि वो मंजर जब
सिर झुकाये बैठे द्रौपदी के
पराजित दास पति मौन थे
भीष्म चुप, द्रोण चुप
खौफ से खामोश नपुंसक प्रजा
अंधेर नगरी का अंधा और चौपट राजा
चौपड की खड खड सुन
भीतर भीतर बल्लियों उछलता हुआ
चेहरे पर ओढे हुए चुप!!
दुर्योधन की वह जंघा पर मारी हुई थाप
कर्ण का वह स्वर – वेश्या
फिर भयानक अट्टाहास
झपट कर दु:शासन का साडी खींचना
और द्रौपदी का आर्तनाद “रक्षा करो कान्हा”
तुम वसन बढाते गये, बढाते गये
तुम अब कर्जदार नहीं थे कृष्ण
लेकिन कर्जे कहाँ छूट पाते हैं?
बिबाईयों भरी जमीन देख
कलेजे पथरा जाते हैं
सुखी राम कब सुखी हुआ?
रामधनी के फटे वसन ही
कर्जे की गारंटी हैं।
कृष्ण निगाह दौडाओ, देखो तो
बैल मर गये, हल टूटे हैं
मिट्टी पानी पानी चीख रही है
विदर्भ देखो, आन्ध्र देखो
कलिंग देखो, देखो पाटलीपुत्र
गौर से देखो यह धरती
वही तो है जिसने पोषित किये
तुम्हारे दशावतार,
तुम आज भी कर्जदार हो।
पानी पकाती माँ के भीतर
पकता, उफनता लावा महसूस करो कृष्ण
देखो कि कैसे आश्वासनों से ही
सो जाते बच्चों के पेट की अंतडियाँ
पीठ फाड कर निकल जाना चाहती हैं...
सुखी राम नें दीवार पर सिर मार लिया है
और रामधनी की कातर आँखों नें कहा
अब और नहीं.....
तुमनें सुना नहीं कृष्ण?
अपने खेत पर से होती हुई
साहूकार के गोदाम के ठीक पीछे
बडे से खेत के बीच
पक्के मकान के भीतर
वह चुपचाप चली गयी
मन ही मन उसने पुकारा है तुम्हे
क्या बहरे हो?
मदिरा है, माया है और रामधनी
देखो, वह जान गयी है, तुम नहीं आओगे
उसकी आँखों में आँसू नहीं हैं
उसके जिस्म में हरकत भी नहीं
फब्तियाँ कसी जा रही हैं – वह चुप है
जंघा पीटी गयी है – वह मौन है
साडी खींची जा रही है,किसे पुकारे, उसका कौन है?
उसने बटोर लिया है खुद को
मुट्ठी में भींच लिया है अनाज दो दिन का
पानी में चावल अब, आँखों में नमक पकेगा
बीतेंगे दो दिन फिर अंधे की नगरी में
मुट्ठी भर चावल को, फिर से वह आयेगी
तुम न आना कृष्ण...
जमना के पीछे वह
डाल कदंम्ब की
अब तो डराती है
चार दिन, तीन मौत
अपने ही जल्लाद आप हुए जाते हैं
सुखी राम झूल गया आज वहीं फाँसी पर
मौन फिर भी पसरा है।
मौन अब सुलग जाये
खेत अब दहक जायें
उलट जाये धरती
हो समतल अट्टालिकायें
बहुत हुआ आग बन जाओ तो
ब्याज बहुत बढ गया है कृष्ण
मोल ही चुकाओ तो
पुकार सुनो....आओ तो।