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मौन का संगीत / मंजुश्री गुप्ता

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हर नवीन दिवस के
प्रारंभ में
सूरज की पहली किरण
फूटने पर
कुछ देर के लिए
डूबना चाहती हूँ
अंतरतम में
और सुनना चाहती हूँ
मौन की झंकार !
किन्तु तभी
मधुर ध्वनि
गुम हो जाती है
शुरू हो जाता है
ऊंची आवाज में
लाउडस्पीकरों का शोर
अलग अलग मंदिरों में
अलग अलग भगवानो की
लगती है पुकार।
सुबह सुबह कोई सुने न सुने
कहीं प्रवचन देता है
कोई स्व घोषित
धर्म का पहरेदार।
किसी मस्जिद में
लगती है
अल्ला हो अकबर
की गुहार !
इन सबके बीच
मै वंचित रह जाती हूँ
सुनने से
अस्तित्व की पुकार।