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मौन का संवाद / मंजुश्री गुप्ता
Kavita Kosh से
मैं लिख रही हूँ
किताब
ज़िन्दगी की यथार्थ कविताओं की!
क्या तुम पढ़ सकते हो
मेरी आँखों में तैरते शब्द?
सुन सकते हो
आंसुओं से टपकते गीत?
मुस्कान के पीछे छिपा हुआ
दर्द का संगीत?
समझ सकते हो?
हर रोटी के साथ सिंकती मेरी भावनाएं?
चख सकते हो
सब्जी में उतरा
कविता का रस?
बच्चों को बड़ा करने में
मैं लिख रही हूँ
ज़िन्दगी का महाकाव्य
उस रचना में
क्या तुम पढ़ सकते हो
मेरा अनलिखा नाम?
घर में करीने से सजी चीजें
मेरी भावनाओं की
उथल पुथल से उपजे
नए छंद हैं
शायद तुम्हे पुराने लगें!
मैं तो लिख रही हूँ
यथार्थ की कविता
मगर क्या तुम इतने साक्षर हो?
कि पढ़ सको
मेरे मौन का संवाद?