मौन क्यों हो पापा / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
(एक कन्या-भ्रूण का अपने पिता से संवाद )
कल ही की तो बात है पापा 
जब आप रेडियो पर सुन रहे थे 
‘सेल्फी विद डाॅटर्स’की बात 
मेरी प्यारी-सी मम्मा के साथ 
मैं भी सुन रही थी 
और सुनकर मीठे सपने देखने लगी थी
कि जब मैं बाहर की दुनिया में आ जाऊँगी 
आप पहनाएंगे मुझे 
तितलियों वाला बूटेदार फ्राॅक 
और मुझे कहते हुए 
‘स्माइल प्लीज माई डाॅटर’
एक शानदार सेल्फी खीचेंगे 
इन्हीं ख़यालों में डूबी 
मैं इतराने लगी थी 
अंधेरे से उजाले की ओर 
टुकुर टुकुर ताकने की 
ख़ूब कोशिश करने लगी थी
पता नहीं फिर क्या हुआ 
कल रात अचानक 
आप ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे 
और मम्मा रोने लगी थी 
सुबह होने तक 
होती रही बरसात 
उनके ज़ल्दी ज़ल्दी करवटें बदलने से 
मैं भी जागती रही पूरी रात 
कल ही की तो बात है पापा 
मैं सपने बुन रही थी 
और आज डरने लगी हूँ 
यह जगह 
अपना छोटा-सा घर तो नहीं लग रहा है 
कैंची और चाकू क्यों 
मम्मा की चूड़ियों के साथ 
रह रहकर खनखना रहे हैं 
आ रही है कैसी 
दवाओं की ये गंध
और देखिए न पापा 
दस्ताने पहने हाथ 
मेरे सुंदर आश्रय की तरफ़ 
तेजी से बढ़ रहे हैं 
जहाँ और कई महीने 
सांस लेनाथा
मम्मा की
धड़कनों के साथ
अभी कुछ हफ़्ते पहले ही तो 
डाॅक्टर अंटी ने मम्मा को 
सावधानी बरतने 
और ख़ूब खाने-पीने की 
दी थी सलाह 
उस दिन बड़े प्यार से 
आपने भी तो सहलाया था मुझे
उसी दिन तो जाना था 
पिता का दुलार
मैंने पहली बार 
जैसे सबकुछ कल ही की तो बात है 
फिर क्यों आज मौन हैं पापा 
क्या अल्ट्रासाउंड वाली फोटो में 
मैं अच्छी नहीं दिखती 
या है कोई लाईलाज़ बीमारी मुझे 
रोक लीजिए न इन औज़ारों को 
वायदा करती हूँ 
कभी आप सबको तंग नहीं करूँगी 
पढ़ लिखकर आपका नाम
मैं रौशन करूँगी 
पापा प्लीज़...
मैं ज़िंदा रहना चाहती हूँ 
प्लीज़ ...प्लीज़ ..प्लीज़....
कचाक् !
ओह पापा 
गुडबाय पापा!
 
	
	

