भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौन न अपने से टूटेगा / नचिकेता
Kavita Kosh से
दिन कैसे बदलेंगे
हवा नहीं बदली तो
खिड़की, रोशनदान खुले
पर, घनी उमस है
बदहवास मन में
बेचैनी गयी अड़स है
खुशबू नहीं मिलेगी
अगर न खिली कली तो
आसमान का मौन
न अपने से टूटेगा
नमी बिना क्यों अंकुर
बीहन में फूटेगा
वर्षा होगी
अगर घिरी काली बदली तो
बिना कंठ खोले ही
क्या विरहा ठनकेगा
बिना कठिन संघर्ष
न यह मौसम बदलेगा
सूत कतेंगे
अगर मिले रुई
तकली तो।