मौन भाषा को हमारी तर्जुमानी दे गया
एक साकित-से कलम को फिर रवानी दे गया
वलवले पैदा हुए हैं फिर मेरे एहसास में
जाने वाला मुस्करा कर इक निशानी दे गया
दाँव पर ईमान और बोली ज़मीरों पर लगी
कोई शातिर शहर को यूँ बेईमानी दे गया
डूब कर ही रह गई हूँ आँसुओं की बाढ़ में
ग़म का बादल हर तरफ पानी ही पानी दे गया
उसके आने से बढ़ी थीं रौनकें चारों तरफ
जब गया तो वो हमें दर्दे-निहानी दे गया
दे गया जुंबिश मिरे सोए हुए जज़्बात को
मुझको ‘देवी’ आज कोई ज़िन्दगानी दे गया