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मौन है टूटा सितारा / छाया त्रिपाठी ओझा
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काश बहती ही रहे ,
इन आँसुओं की तरल धारा ।
डूबते राही को जब तक
ना मिले कोई किनारा ।
व्यस्त है सारा जहाँ यह
चाह अब किसको किसे है !
सो रहा सुख कोठियों में
पांव दुख अपना घिसे है !
चाँदनी सबको लुभाती,
मौन है टूटा सितारा ।
जानती हूँ मैं धरा की
ये पुरातन रीतियाँ हैं !
हर विजेता की यहाँ पर
चल रहीं बस नीतियाँ हैं !
कौन उसके पास जाता,
जिन्दगी में जो है हारा ।
पर न जाने क्यों हृदय भी
दर्द से विक्षिप्त है अब !
लग रहा मन भी किसी
संकल्प से उद्दीप्त है अब !
दुर्दिनों में रह गई हूँ
मैं अकेली-बेसहारा।