भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौन / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
मौन
- चल रहा है
वंचक चांदनी में
तुम्हारे चम्पक सौन्दर्य के साथ
सल्लज गोपनीयता के पग से
(रचनाकाल : 18.11.1964)