मौन / साधना जोशी
मौन बड़ा विचित्र षस्त्र है
सार्थकता के लिए भी निरर्थक्ता के लिए भी
किसी बात पर मौन हो जाना है
हमारा अस्तित्व मिटा देता है
प्राण युक्त होते हुये भी हम
प्राणहीन बना देता है ।
आज मौन रहने का महत्व बढ गया है
अभिव्यक्ति के कछुवे से
खरगोष बनकर आगे निकल गया है
अच्छाई का ऑचल ओड़कर
भेड़िये जैसे नानी बन गये हैं ।
मौन के प्रेमियों की संख्या बढ गयी है
स्वार्थ, डर, लालच, कर्महीनता, दुष्प्रवृतियाँ
बने इसके लिए लक्ष्मण रेखा खींचती है,
चक्षुओं से अगर देख लिया जाता है
वाणी उसे रोक देती है
जिह्वा थरा थरा कर हिलने की
कोषिषें बार-बार किया करती है
बतीस दरवान उसे पीछे ढकेल देते हैं ।
मौनता का राज कभी तो खुलेगा
अभिव्यक्ति का षासन दृढता से आयेगा
स्वछन्दता कर्तव्य निश्ठता की मसाल लिए
देष का हर व्यक्ति मौनता के अन्धकार को
मिटा देने का हुनर सीखेगा ।