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मौसम की ये कारस्तानी / शार्दुला नोगजा
Kavita Kosh से
वन में आग लगा कर चंचल
टेसू मन ही मन मुस्काता
कब आओगे दमकल ले कर
रंग-बिरंगे फागुन दादा?
कोयल फिर सुर की कक्षा के
अभ्यासों में जुटी हुई है
और मेघ की नटखट टोली
कर के मंत्रणा घुटी हुई है!
एक बूंद भी नहीं बरसती
देख हँसी दूब को आयी
होता है हर साल यही तो
कह मेंढक ने ली जंभाई।
बालक सा मन पढ़ने लगता
पंचतंत्र की कथा पुरानी
नया साल फिर ले आया है
बातें सब जानी पहचानी।
दुनियावी सवाल सुलझाते
याद हमें आ जाती नानी
पर मन को शीतल कर जाती
मौसम की ये कारस्तानी!