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मौसम जब साफ़ होता है / बरीस पास्तेरनाक

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झील दिखती है एक दैत्यकार तश्तरी की तरह
और झील के उस पार बादलों का जमाव है ।
मानो चमकती गंभीर पर्वत-चोटियों का जमघट हो
विशाल विस्तृत क्षितिज पर ।

परिवर्तनशील चंचल प्रकाश के साथ
दृष्टिगत भू-भाग कभी नहीं दीखता एक जैसा ।
अभी कज्जल-छवि वाले परिधान में दिखता था जंगल
किंतु दूसरे क्षण लगता है प्रज्वलित सारा वन-प्रान्तर ।

कई दिनों के बरसाती मौसम के बाद
जब उठता है भारी परदा
तब कितना समारोहित दिखता है आकाश--
मुक्त और खुला हुआ,
कितना विजयोल्लसित लगता है लॉन ।

हवा गिर कर शेष हो गई, दूरियाँ दमकने लगीं
और सूरज की किरणें पसर गईं घास पर ।
स्वच्छ दिखने लगे लहलहाते तरु-पात,
धब्बेदार जंगलों के शीशे पर आकृतियों की तरह ।

तब चर्च की तंग खिड़कियों से
पसरे पंखों पर चमकते ताज पहने
एकटक देखने लगे अनंत की ओर बिना सोए चौकसी करते हुए
संत, तपस्वी, पैगम्बर, देवदूत और नृप ।

यह सम्पूर्ण विशाल संसार दिखने लगता है एक देवमंदिर-सा
मैं अंदर होता हू~म इसके । हवा ग़ुम होती है
और दूर से कभी-कभी आती है
मेरे कानों में स्तोत्र-स्तुति की अनुगूँज ।

संसार, प्रकृति और ब्रह्माण्ड के इस पूजा-मंडप में,
तुम्हारी दीर्घकालीन और अधीर आराधना में
प्रस्तुत रहूँगा मैं अंतर से पुलकित होकर,
आँखों में सुख के आँसू ले अंत तक ।


अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह