मौसम ने क़हर ढाया दहशत है किसानों में / देवमणि पांडेय

सूखा पीड़ित किसानों पर एक ग़ज़ल

मौसम ने क़हर ढाया दहशत है किसानों में।
दम तोड़ती हैं फ़सलें खेतों-खलिहानों में।

धरती की गुज़ारिश पर बरसे ही नहीं बादल
तब्दील हुई मिट्टी खेतों की चटानों में।

थक हार के कल कोई रस्सी पे जो झूला है
इक ख़ौफ़ हुआ तारी मज़दूर - किसानों में।

क्यूँ कैसे मरा कोई क्या फ़िक्र हुकूमत को
पत्थर की तरह नेता बैठे हैं मकानों में।

अब गाँव की आँखों में बदरंग फ़िज़ाएँ हैं
खिलती है धनक लेकिन शहरों की दुकानों में।

क्यूँ रूठ गई कजरी दिल जिसमें धड़कता था
क्यूँ रँग नहीं कोई अब बिरहा की तानों में।

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