भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौसम / सुरेश ऋतुपर्ण
Kavita Kosh से
मौसम
स्कार्फ नहीं हैं दोस्त !
कि गले में बांध
सीटियाँ मारते
निकल जाएँ आप
यहाँ से वहाँ
दूर तक —
मौसम आग है पिघलती हुई
फैलती हुई अफवाह है
मौसम धूल है, पानी है
झरता पीलापन और उदासी है
सुबकन है
भूख से बिलखती किसी बच्ची की
या फिर
चोंच में तिनका लिए
बार-बार घौंसला बनाती
चिड़िया की थकान है
वह हमारी पकड़ से दूर है
लेकिन हमसे बाहर नहीं
मौसम,
फैशन नहीं है दोस्त !
हमारी जान है !