भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौसम / हरेराम बाजपेयी 'आश'
Kavita Kosh से
जब-जब मौसम सर्द हुआ करता है,
तन में मीठा-मीठा दर्द हुआ करता है।
मौसम क्या है कुदरत का एक सिपाही है,
जो कुदरत को जीते वह मर्द हुआ करता है।
दिल तो आदी हो गया वेदनाएँ सहने का,
तन की नाजुकता पर क्यों गर्द उड़ा करता है।
वर्षों से बर्फ जमी पानी किस्मत की चोटी पर,
कोई सूरज बहके भी तो क्या फर्क हुआ करता है।
थोड़ी-सी गरमाहट पा लेने को, क्यों 'आश' बताओ,
ताजमहल-सा तन अकसर मुमताज़ हुआ करता है।
जब-जब मौसम सर्द हुआ करता है,
तन में मीठा-मीठा दर्द हुआ करता है॥