म्यरा भ्यना जी / सुन्दर नौटियाल
मेरा भ्यना जी....
जब बि तुमु समळना की कोशिश करदू
याद ऐ जांदी दाड़ी का बीच छिरकदी तुमारी मुस्कान ।
मुस्कान यनि कि जु कबि अलग नि ह्वे,
सुख मा, दुःख मा गैरी पिड़ा मा ।
कतख्या दुख, कतक्या पिड़ा
कख लुकै देंदी न तुमारी मुस्कान ?
हमेशा करदू तुमु तैं समझण की,
एक नाकाम कोशिश ....
तु कै माटा बण्यां छ किकृ
जब सब टंेशन मा रंदन तब बिकृ
तु खितकणा रंदन खित-खित
अर लुकै जांदन अपड़ी सारी टेंशन,
सारी सीरियस बात जन उड़े देंदन हवा मा ।
शायद तुमुन सिखियाली दुखु का पहाड़ चैणा ।
शायद तुमुन सिखियाली जमाना का मुखौटा पैणा ।
छुट्टु थै त समझी नी सकदू थे तुमाय दुख,
पर अब समझ बतोणी छ कतगा सैणा छ तुम ?
रात दिन दुख मा, सुख की आस मा रैणा छ तुम ।
अब जब बि तुम हंसदन मेरा समणि,
त रोणा क बोल्द मन म्यारू ...
कि यू मनखि छ कि नीलकंठ ?
जु सारू कष्ट पीक भी निभोणु छ धर्म अपड़ू ।
कबि खिस्सी भरीं नि रै पर हाथ खाली नि रै,
सुद्दी लुटोंदन तु पैसी टक्की, हंसी खुशी ।
कुछ नि बचयूं छ अपुक, न कमयंू छ नौनुक
पर नी रखीं देणदारी दुखुकी कैका खातिर ।
आज तुमारा जन्मदिन पर क्या मंागी सकदू,
बस प्रार्थना करदू... कि हे विधाता !
अगर दी सकदू त दी दी,
मेरा भ्यना तैं मेरा बांटा बि सुखकृ
ताकि कुछ त कम ह्वै सकू,
वोंकु जीवन भर कु दुख ।।