भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्यान बिना तलवारें क्यूं दो-तीन हैं / शारदा कृष्ण
Kavita Kosh से
म्यान बिना तलवारें क्यूं दो-तीन हैं,
ये अपराध तुम्हारा भी संगीन है ।
साँप सपेरे से क्यूं यारी रखेगा,
उसके भी हाथों में लेकिन बीन है ।
रहम करें जंगल के राजा पर रवरहे,
तेरे तल्ख नजरिये की तौहीन है ।
रोज नये पंछी फँसते हैं जाल में
सबका भाग्य विधाता के आधीन हैं ।
तेरी मेरी खातिर कौन गया काबा
अपने-अपने सबके राम रहीम हैं ।