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म्हनैं म्हारी भासा चाइजै / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
अंतस में ताफड़ै
जुगां जूनी हूंस
म्हनैं म्हारी भासा चाइजै।
म्हैं जाणूं
भासा बिहूणो हुवणो
कितो दुखदायी है
जिंया गाय बिना खूंटो
टीकै बिना लिलाड़
अर मूरत बिना हूवै मिंदर
ठीक बिंया ई
भासा बिना हुवै मिनख।
जिंया चक्रव्यूह में घिरयो
एकलो अर निहत्थो अभिमन्यु
जगत रै आंगणै
बिना भासा रै बाळक
थारै पैलै दरसाव
म्हारै उजाड़ आंगणै
निपज्या केई सबद
थारी आंख्यां सारू
म्हैं सोधी नूंवीं नकोर उपमावां
थारै उणियारै नै
ढ़ाळयो म्हैं
केई रूपकां में
जणां ठाह पड़यो
थारै सूं
संधै है म्हारी भासा।
आव ! थूं
म्हारी भासा बण
पछै देखजे
म्हैं रचूंला
नूंवी अटाण कवितावां
जैड़ी नीं कथीजी
हाल तांई !