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म्हारी कलम / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
पड़गी
अबै
म्हारी कलम
काळ रै लारै,
फेंकसी
उखाड’र
जड़ामूळ स्यूं इण नें
जणां पड़सी
जक,
पकड़ासी कान
कैवासी
इण निरदई स्यूं
फेर कोनी कंरूं
कदेई
माटी स्यूं असकेल,
हिलासी
आप रै होटां पर
आयोड़ै
सबद स्यूं
सŸाा रो सिंहासण,
पडसी जद
माथै रो मुगट नीचै
जणां देखसी
नसै में धुत नैण
धूजती धरती
बावड़यसी चेतो
पुगासी पाणी
तिसाई मरती
जामण ताणी !