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म्हारी जूण / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
कथा बांचणियौ
यूं ई बांचैला
कथा
होठां रै
बीचलै सरणाटै
गमती रैवूंला
म्हैं
हंसैला जादूगर
रोवैला माईत
आखौ कडूंबौ
रोवतौ रोवतौ
होवैला राजी
उण एक दिन
डरता जीवैला
आखी जूंण
म्हैं
कठैई
पाछी नीं आय जावूं