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म्हारी पीड़ री वां’नैं खबर लागै / जोगेश्वर गर्ग
Kavita Kosh से
उडीकूं रोज… , म्हारी पीड़ री वां’नैं खबर लागै
मगर मनमीत पर म्हारै दुशमणां रौ असर लागै
भंवर सूं पार उतरूं म्है जे था’रौ हाथ हाथां में
बिछोड़ा जद हुया था’सूं ; किनारो भी भंवर लागै
कसमसावै घणा वे लोग सिंघासण पलंगां पर
बबूली छांव में म्हांनैं छतर लागै चंवर लागै
भर्’या भण्डार जद घर में ; संतरी सांतरा राखै
लुट गया माल मत्ता तो न भय लागै न डर लागै
मगज ठंडो नज़र नीची सबद मीठा घणा मुश्किल
चढै मद राज रौ बां’नैं मतीरो भी मटर लागै
ज़मीं में ज़हर धोखै रौ , हवा में चापलूसी है
मनां में मैल मिनखां रै… अजूबो औ शहर लागै
शहर में खूब चर्चा है समझ कोनी सकै कोई
न “जोगेश्वर” गयो-गुजर्’यो न “जोगेश्वर” ज़बर लागै