भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारी बाई / देवकी दर्पण ‘रसराज’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स’कडा कै अढाव-खढावै
फूग्यां पाछ भी
पोय लै छै सूंइ में तागो
गडफती रै छै
खतल्यार गोदड़
जोड़ती रै छै
घाघरा-लूगड़ा रै पल्या नैं
हाल भी खगतो मांड’र
पठोरी क नाई
चढ जावै छै
नसैणी का
आखरी गात्या पै
बेवड़ा का बेवड़ा
पाणी
गाय को
पाळगन्डा में उंदा’र
लागत इ श्राद्धा
पांवां की पगतळ्यान सूं
घुंद्यो गारो
लूलर्या पड़ी हथेळी के नीचै
भसका तुणकल्या समेत
हो जावै छै सीदो
घरू दीजो
लूण्या को घी खार
चाल छावळी आऊं छूं
व्हा फुरती अर लगन
कद दीखैगी
आजकाल की कोराण्यान में
जे म्हारी बाई में छी।