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म्हारी मा / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
उणरै धीरज नै लखदाद
पग सूं लातां मारी
केई बार
हियै मांय ई
भरिया चूंठिया
पण उणनै नीं आई रीस
मुळकती ई रैयी
उणरै चेहरै माथै
नखां सूं मांडया
केई निसाण
खून काढयो बार -बार
पण
बा नीं रोई
म्हनै ई रोवतै नै
हाथ सूं थपक्यां देय ‘र
नींद दिराई
साची कैवै लोग
खुद तकलीफ उठाय दूध पावै
हर मार नै सह जावै
जणै इज तो बा
मा कहावै ।