भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारे जनम-मरण साथी थांने नहीं बिसरूं दिनराती / मीराबाई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


राग प्रभावती


म्हारे जनम-मरण साथी थांने नहीं बिसरूं दिनराती॥
थां देख्या बिन कल न पड़त है, जाणत मेरी छाती।
ऊंची चढ़-चढ़ पंथ निहारूं रोय रोय अंखियां राती॥
यो संसार सकल जग झूठो, झूठा कुलरा न्याती।
दोउ कर जोड्यां अरज करूं छूं सुण लीज्यो मेरी बाती॥
यो मन मेरो बड़ो हरामी ज्यूं मदमाती हाथी।
सतगुर हस्त धर्‌यो सिर ऊपर आंकुस दै समझाती॥
पल पल पिवको रूप निहारूं, निरख निरख सुख पाती।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर हरिचरणा चित राती॥

शब्दार्थ :- थाने = तुमको। राती =लाल। जोड्‌यां =जोड़कर। हस्त =हाथ। राती = अनुराग।