म्हारे हीवड़े री कोर / मनोज चारण 'कुमार'
म्हारे हीवड़े री ओ कोर ! गई कठे तू मनै छोड़,
रिश्तो हीवड़े स्युं तोड़, जीवड़े नै एकलो छोड़,
गयी म्हारै मनड़े न मोहर, म्हारै हीवड़े री कोर।
हीवड़ों म्हारो यूं हुळसै, ज्यू पपीओ लूआं मैं झुळसै,
सावण री झड़ी बण के आव, म्हानै प्रेम नीर तू प्याव,
कळायण बणके जळ बरसाय, म्हारै हीवड़े री ओ कोर।
हो चाले जद-जद ठंडी भाळ, खोलां जद उतराधी साळ,
ओळयूं भोत घणी आवै, मनडो मुरझा ज्यावै,
ओ म्हानै याद घणी आवै, म्हारै हीवड़े री ओ कोर।
पाड़ोसण जद-कद भी हँसै, तो मनडो मन-ही-मन धँसै,
जद थारी हंसी याद आवै, मनडो हरख-हरख ज्यावै,
ओ थारी याद घणी आवै, म्हारै हीवड़े री ओ कोर।
पाजेबाँ री झणकार, तो थारै चुड़लै री रुणकार,
सुणे म्हानै रातूँ सुपना माँय, आखी रात आंख्या मैं जाय,
चैन म्हानै किया आय, म्हारै हीवड़े री ओ कोर।
थारी नथली को मोती, चमकती मांग री जोती,
थारा रतनारा बै नैण, मीठा मोरणी सा बैण,
म्हानै याद आवै दिन-रैण, म्हारै हीवड़े री ओ कोर।
सुरंगी तारांळी चुनड़ी, बिचली आंगळी मैं मुंदड़ी,
राखड़ी धरी मांग रै बीच, याद आवै बै सगळी चीज,
क्यूं तू गयी म्हांसू खीज, म्हारै हीवड़े री ओ कोर।
होयी गळती म्हांसू काई, तू छिपगी चाँद की नाई,
आवोजी आवो रीस नै छोड़, म्हे करांला थारा कोड,
आवो म्हारै हीवड़े री कोर।।