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म्हारै चितराम नै नीं / सांवर दइया
Kavita Kosh से
म्हारै मनै
किणी ऊणै-खूणै में
साव नागी-उघाडी बैठी तूं
लागै अणहद रूपाळी
कागद माथै कलम सूं
चितारियो थारो रूप
जग में हुई चावी तूं
देखै अर सरावै लोग-
रूप-रंग-उणियारो
अंगां रा मोड़
रंग सागै रंग रो जोड़
म्हारै चितराम नै नीं
थनै ई सरावै बै
तूं ई बैठी है
सगळां रै मनां में
किणी-न-किणी ठौड
साव नागी-उघाड़ी !