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म्हारों बालूड़ों ग्यो तो सासरे / राजस्थानी
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
म्हारों बालूड़ों ग्यो तो सासरे, जरमरियो
काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
लाड़ी आयो ने अनुअर डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
बेड़ो लायो ने थाली डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
लोटो लायो ने लोटी डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
सीरस लायो ने ढ़ाल्यो डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
म्हारो बालूड़ो ग्यो तो सासरे ... जरमरियो ढ़ोलो
काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो।