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म्हारो चंदा दूर / करणीदान बारहठ
Kavita Kosh से
मत चमकै आ चांदनी, म्हारो चंदा दूर।
तेरा चंदो हियै बसै,
जद तूं बरसै नूर।
म्हारो हिवड़ो खाली हूकै,
पूरण वाती दूर।
मान मान ओ मानिनी, म्हारो मनड़ो दूर।
मत चमकै ओ चांदनी, म्हारो चंदो दूर।
तू बरसै ओ बादली,
तेरी बिजली देख।
म्हे बरसां बिन बिजली,
कर कर दुःख बिसेख।
तू मत हठ कर बावली, मत घिर घालै लूर।
मत बरसै ओ बादली, म्हारी बिजली दूर।
मत सरसै ओ सावणी, म्हारी सुरंगी दूर।
तू हरसै ओ हारिणी,
लख लख सुरंगो चीर।
म्हे के हरखां आंटली,
आंख्या बरसै नीर।
के गांवां ओ गावणी, म्हारी सरगम चूर।
मत सरसै ओ सावणी, म्हारी सुरंगी दूर।