भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारो देसूंटो / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाप रै
हुकम सूं मिळ्योड़ो
राम नैं देसूंटो
चवदै बरसां रो
जको दियाळी नैं पूरो हुग्यो।

पापी पेट सारू
म्हारो देसूंटो
हुवैला कद पूरो?