भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारो सांच / अजय कुमार सोनी
Kavita Kosh से
म्है
आज
म्हारै सांच
अपणे आप नै ई
नीं बतायो
इण सारू
म्है
थां नै भी
म्हारो सांच नीं बताऊंला
कूड़ी आस क्यूं पाळो ?