भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारौ गांम / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादी रा गीत
मा री लोर्यां
टाबरां री
लुकमीचणी

अर
दिन ढळतांईं
गुवाड़ में बैठ्या
अल्लादीन ताऊ
करम सिंह चाचा
अर मोडू भाईजी री
लूंठी दोस्तीआळौ
म्हारौ गांम
कठीनै चल्यौ गयौ

कोई बताद्यौ मन्नै
कै
म्हारै गांम रै
मिनखां रै
कांईं हुग्यौ।