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म्हारौ होवणौ / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
म्हारी जमीन रौ
पैलौ पावंडौ
हर बार
गम जावै
जादू
अर
जंगळ रै बीच
म्हैं सोधूं
दूजां री हथाळी
ऊगती किणी रेख मांय
खुद नै