भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हे कुटीजता / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
म्हे जद छोटा हा
बात बात माथै
रूस जांवता
मानता तो मानता
नींस कुटीज जांवता
कई बार
कुटीज जांवता तो भी
रूस जांवता
मानता ई नीं
लाख मनायां ई!
ठाकुरजी रै भोग ताईं
आई मिठाई
चोर'र खांवता तो कुटीजता
मांगता तो भी कुटीजता
पत्थर रै भगवान रै
चढ्योड़ी मिठाई
भगवान तो नीं
हरमेस म्हे ई खांवता
लुक बांट'र
ठाह लाग्यां भी
म्हे ई कुटीजता!
पत्थर री देवळी तो
सदां ई इकसार
हांसती रैंवती
मा खानीं अर म्हां खानीं!