म्हैं उडीकूं कविता / नीरज दइया
जोयां हाथ नीं आवै कविता
अणचींतै सूझै....
जद करणी चावू बतळावण
तो कोनी सूझै
कोई सावळ सवाल
सवाल ओ पण है-
कोई कवि कविता सूं
कांई करै सवाल?
कांई कविता सूं ओळख पछै ई
जरूरी होवै कोई सवाल?
सवाल है कै कित्ती बजी है?
सवाल है कै बारै जावो पाछा कणा आसो ?
सवाल है कै अबार जीमसो का पछै?
सवाल है कै चाय बणा दूं पीसो कांई?
सवाल है कै नींद आवै बत्ती कद बंद करसो ?
सवाल है कै आं पोथ्यां में सारो दिन कांई सोधो ?
सवाल है कै कोई पइसा टक्कां रो काम क्यूं नीं करो...?
सवाल... सवाल... सवाल ।
सवाल भळै है केई सवाल
पण कोरा सवालां सूं कांई संधै !
कांई सगळा सवाल रळा'र
सांध देवूं कोई कविता
पण कांई करूं
अबार-अबार ई जलम्यो है जिको सवाल
आप रै मगज मांय
इणी खातर तो सगळां सूं पैली कैयो-
जोयां हाथ नीं आवै कविता अणचींतै सूझै....
कविता आ है
कै म्हैं उडीकूं कविता
जे थानै सूझै कविता
तो उण नै खबर जरूर करजो
- कै म्हैं उडीकूं।