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म्हैं हांसी ही /अंकिता पुरोहित
Kavita Kosh से
घर सूं गळी
गळी सूं गांव
गांव सूं ठाह नीं कठै-कठै
भंवै भाई
सिंझ्या
उण सूं पैली पूगै
गांव रा ओळमा
समूळो घर
ऊभो दीखै भाई साथै
भाई रै कूड़ माथै
न्हाखै धूड़
ओळमा बूरता!
म्हैं हांसी ही गळी में
फगत एक दिन
बांदर-बांदरी रो
खेल देखतां
जा पछै
बंद है
म्हारै घर री
बाखळ रो बारणो
अणमणा है
घर रा सगळा
उण दिन रै पछै!