यक़ीन न हो तो चलो देख लो अभी।
हर किसी के भीतर है सूखी नदी।
यह ख़ौफ़, यह ख़ामोशी अजीब नहीं,
उड़कर देख, मौसम बिगड़ेगा अभी।
सपनों की लाश नहीं देखी तूने,
ताबीर की बातें करता है तभी।
भीतर उठी आवाज़, पर सुनी नहीं,
इतना कुसूर तो कर चुके हम सभी।
धीरे ही सही, लेकिन फूंक मारो,
बुझते अंगारे खिल जाएंगे अभी।