भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यकायक / अमित कल्ला
Kavita Kosh से
छलकता
नेत्रों की
गहराई से ,
रिझा रिझा कर
कराता
स्वीकार
हार
तोड़ता
कैसे
न जाने
अंहकार को
वह इक
यकायक ।