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यक-ब-यक अपने लिए इतनी मुहब्बत देखकर / ओंकार सिंह विवेक

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यक-ब-यक अपने लिए इतनी मुहब्बत देखकर,
लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर।

एक-दो की बात हो तो हम बताएँ भी तुम्हें,
जाने कितनो के डिगे ईमान दौलत देखकर।

हुक्मरां का क्या अमल है और है कैसा निज़ाम,
ख़ुद समझ लें आम जन की आप हालत देखकर।

आप चाहे कुछ भी कहिए,हो नहीं सकता कभी,
ख़ौफ़ जो खाए न झूठा,सच की ताक़त देखकर।

दरमियां काँटों के भी खिलना नहीं जो छोड़ते,
सीख तो मिलती है उन फूलों की हिम्मत देखकर।

खेत भी होरी का गिरवी,काम भी मिलता नहीं,
आ गया मुँह को कलेजा उस पे आफ़त देखकर।

धर्म का नश्शा सुँघाकर माँगते हैं वोट वो,
कैसे दिल तड़पे न ये सस्ती सियासत देखकर।