भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यति सम्म प्रीति गरी गरी न यता भयें न उता भयें / मोतिराम भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यति सम्म प्रीति गरी गरी न यता भयें न उता भयें,
नत मन् लियें नत दीदियें न यता भयें न उता भयें।

नत होस् वासकि राखियो नत फूलको रस चाखियो,
नत याद भो नत स्वाद भो, न यता भयें न उता भयें।

बिनु औसरै सित भेट्नू तरबार लीकन रेट्नू,
नत छिन्दिनू, नत नछिन्दिनू, न यता भयें न उता भयें।

नत साथ बस्न सँगी भयें नत दुस्मनै सरि भै गएँ
न पुरानियाँ नत मो नयाँ न यता भयें न उता भयें।

नत खुस् भईकन प्रेम् गरी तन रिस् गरी कन मन् हरी
न यसो गरी न उसो गरी न यता भएँ न उता भयें।