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यदि जीवन पुनः बना पाता / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
यदि जीवन पुनः बना पाता।
मैं करता चकनाचूर न जग का
दुख-संकटमय यंत्र पकड़,
बस कुछ कण के परिवर्तन से क्षण में क्या से क्या हो जाता।
यदि जीवन पुनः बना पाता।
मैं करता टुकड़े-टुकड़े क्यों
युग-युग की चिर संबद्ध लड़ी,
केवल कुछ पल को अदल-बदल जीवन क्या से क्या हो जाता।
यदि जीवन पुनः बना पाता।
जो सपना है वह सच होता,
क्या निश्चय होता तोष मुझे?
हो सकता है ले वे सपने मैं और अधिक ही पछताता।
यदि जीवन पुनः बना पाता।