यदि तेरे नत नयनों में भर आता नीर नमन का / ललित मोहन त्रिवेदी
यदि तेरे नत नयनों में भर आता नीर नमन का !
तो इतना एहसास न होता एकाकी जीवन का !!
अचक अचानक टूट गए क्यों अमर नेह के नाते
छोड़ गए क्यों गीत अधूरे अधरों पर लहराते
सागर की अनंत गहरे पर अभिमान न करते
लग जाता अनुमान कहीं यदि लहरों की थिरकन का !
तो इतना एहसास..........
देखी थी अव्यक्त वेदना पायल की रुनझुन में
सौ-सौ नमन प्रीत के देखे थे प्यासी चितवन में
यदि प्रणाम तक ही सीमित रह जाती अंजलि मेरी
तो मन्दिर उपहास न करता पाषाणी पूजन का !
तो इतना एहसास ...........
कब अभीष्ट थी अरुण कपोलों पर वसंत की लाली ?
कब इच्छित थी मादक नयनों से छलकी मधु प्याली ?
सौरभमय केसर क्यारी की भी तो चाह नहीं थी ,
एक सुमन ही काफ़ी था इस मन को अभिनन्दन का !
तो इतना एहसास ...............
कब-कब बता शलभ ने जल कर दोष दिया बाती को ?
मृग ने बता कभी कोसा है कस्तूरी थाती को ?
उपालंभ अब हम ही क्या जा उन्हें सुनाएँ जिनको ,
आकृति का विक्रतावर्तन भी लगा दोष दर्पण का !
तो इतना एहसास ..............