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यदि दीर्घ दुःख रात्रि ने / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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यदि दीर्घ दुःख रात्रि ने
अतीत के किसी प्रान्त तट पर जा
नाव अपनी खेनी कर दी हो शेष तो
नूतन विस्मय में
विश्व जगत के शिशु लोक में
जाग उठे मुझमें उस नूतन प्रभात में
जीवन की नूतन जिज्ञासा।
पुरातन प्रश्नों को उत्तर न मिलने पर
अवाक् बुद्धि पर वे करते है सदा व्यंग,
बालकों सी चिन्ता हीन लीला सम
सहज उत्तर मिल जाय उनका बस
सहज विश्वास से-
ऐसा विश्वास जो अपने में रहे तृप्त,
न करे कभी कोई विरोध,
आनन्द के स्पर्श से
सत्य की श्रद्धा और निष्ठा ला दे मन में।

कलकत्ता
प्रभात: 15 नवम्बर, 1940