यदि मुझे मधुरतम प्यार मिले तो जानूँ / बलबीर सिंह 'रंग'
यदि मुझे मधुरतम प्यार मिले तो जानूँ।
मेरे मन का संसार मिले तो जानूँ॥
जीवन में सबको प्यार नहीं मिता है,
आशंकाओं में प्यार नहीं पलता है;
साधना हीन इच्छाओं की आँधी में-
जीवन भर आशा दीप नहीं जलता है।
रवि ने कब पाया रजत-निशा का चुम्बन?
शशि ने कब देखा है निदाघ का जीवन?
कहने को तो उपदेश मुझे भी आता-
कुछ करने का अधिकार मिले तो जानूँ।
कल्पना सदा साकार नहीं होती है,
याचना कभी अधिकार नहीं होती है;
कटु सत्य-सिंधु के भीषण तूफानों में-
सपनों की नौका पार नहीं होती है।
लहरें मिलती हैं, गति के उलझाने को,
तट मिलते हैं,रह-रह कर टकराने को;
भर सके मुझे, निज भँवर-भुजाओं में जो-
वह अति-उदार-मँझधार मिले तो जानूँ।
तारों को तजकर राग अमर होता है,
रागों को तजकर त्याग अमर होता है;
मधुमयी मिलन वेला को तजकर ही तो-
विरही मन का अनुराग अमर होता है।
है गाने का आधार आह का रोना,
है पाने का आधार चाह का खोना;
मैं इन सब का आधार जानता हूँ पर-
मुझको मेरा आधार मिले तो जानूँ।
यदि मुझे मधुरतम प्यार मिले तो जानूँ।
मेरे मन का संसार मिले तो जानूँ॥